लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥




लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥


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